देखौ री या मुकुट की लटकन।
रास किये निरतत राधे संग,
नूपुर शब्द पांय की पटकन।।
पीताम्बर छुट जाय छिनहिं छिन,
बैजन्ती बेसर की अटकन।
सूर स्याम की या छबि ऊपर,
झूठौ ज्ञान योग में भटकन।।
आरती कीजै नवनागर की।
खंजन नैन रूप रसमाते,
रूप सुधा सागर की।।
पान खात मुसिक्यात मनोहर,
मुख सुखमा आगर की।
रसिक सखी दम्पत्ति आरती,
सों नैंन सैन उजागर की।।