♥श्री राधा मोहन♥

 
♥श्री राधा मोहन♥
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नैंननिं पर वारौं कोटिक खंजन | चंचल चपल अरुन अनियारे, अग्र भाग बन्यौ अंजन || रुचिर मनोहर बंक बिलोकनि, सुरत समर दल गंजन | (जै श्री)हित हरिवंश कहत न बनै छबि, सुख समुद्र मन रंजन || 22||श्री हित हरिवंश महाप्रभु, हित चतुरासी पद हिंदी अनुवाद स्वामिनी श्रीराधा नित्य परम सौन्दर्य्य मयी हैं | उनके एक एक अङ्ग सौन्दर्य्य एवं माधुर्य्य के निधान हैं किन्तु इस पद में केवल उनके स्वाभाविक अभिराम नयनों के सरस लावण्य, माधुर्य्य और चांचल्यादि गुणों का वर्णन है जो सुख समुद्र और मन रञ्जन हैं | स्तुति व्याज से आचार्य्य चरण कहते हैं – ( है राधे ! तुम्हारे ) नयनों पर मैं कोटि कोटि खञ्जनों को भी न्योछाबर कर दूँ | ( कितने सुन्दर हैं तुम्हारे नयन ? ) चञ्चल हैं, चपल हैं – अत्यन्त चपल हैं, अरुण है और अनियारे – कोर दार भी | तिस पर उनके अग्र भाग में और अञ्जन भी लग रहा है | इन नयनों का रुचिर, मनोहर एवं कटाक्ष पूर्ण बक्र ( तिरछा ) ( नयन नोकों से ) अवलोकन तो सुरत युद्ध में ( विपक्षी ) दल का मथन ही करने वाला है |” श्रीहित हरिवंश चन्द्र कहते हैं – “सखि ! इनकी छवि तो कुछ कहते ही नहीं बनती | अरी ! ये तो सुख सुमद्र हैं और मन का रञ्जन करने वाले भी |”
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