मैं तो हरि चरणन की दासी, अब मैं काहे को जाऊँ कासी। (टेक)
घट ही में गंगा घट ही में जमना, घट-घट हैं अबिनासी।
घट ही में पुसकर औ लोधेश्वर, लछिमन कँवर बिलासी।।1।।
जगनाथ गंगासागर है साखी गुपाल ब्रजबासी।
सेतुबन्ध रामेश्वर ईश्वर, मूल बटी सुरजा-सी।।2।।
अवधपुरी मधुपुरी द्वारिका, चित्रकूट यमुना-सी।
गोवरधन गोकुल बृन्दाबन, बीच मण्डल चैरासी।।3।।
हरिद्वार कुरुखेत जनकपुर, गोदावरी हुलासी।
तीरथ बड़े प्रयाग गयाजी, कासी तरुवर वासी।।4।।
बिंध्याचल रु ग्रिनार रंग हैं, सुघर कपिल दुखनासी।
बदरीनाथ केदार गंगोतरि, बैजनाथ कैलासी।।5।।
पंचवटी पम्पापुर रुक्मिणि, देव कपिल युवरासी।
नैमषार श्रृंगी रिष मिसरिष, कासी पाप-बिनासी।।6।।
मटुकनाथ अरु मानसरोवर, मानलता अरु हाँसी।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, सहज कटै यम फाँसी।।7।।