जबते मोहि जगन्नाथ दृष्टि परो माई ।अरुण खम्भ गरुङ खम्भ सिन्धु पोर झांई । मन्दिर की शोभा कछु वरणी न जाई ।। मंगल को दरस देख आनन्द हो जाई ।जय जय श्री जगन्नाथ सहोदर बलभाई ।।थाल भोग लगाने की बिरियाँ जब आई । उखड़ा और दूध भाग प्रभुजी ने खाई ।। महाप्रसाद भोग खात आरती सजाई । अपने प्रभु नासिका पर मोतिन लटकाई ।। बीच में सुभद्रा सोहे दाहिने बल सोहाई ।बाएँ हाथ लक्ष्मी छवि वरणी हू न जाई ।।मार्कण्डेय वट कृष्ण रोहिणी सुखदाई । इन्द्रदमन स्नान करत पाप सब नसाई ।।महोदधि चक्र तीरथ गंगा गति पाई ।मीरा के प्रभु जगन्नाथ चरणन बलि जाई ।।________________भक्तिमति मीराबाई