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❤श्री प्रिया प्रियतम❤
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बिहरैं पिय प्यारी सनेह सने छहरैं चुनरी के फवा कहरैं। सिहरैं नव जोबन रंग अनंग सुभंग अपांगनि की गहरैं। बहरें रसखानि नदी रस की लहरैं बनिता कुल हू भहरैं। कहरैं बिरही जन आतप सों लहरैं लली लाल लिये पहरैं।।225।। सोई हुती पिय की छतियाँ लगि बाल प्रबीन महा मुद मानै। केस खुले छहरैं बहरैं फहरैं छबि देखत मैन अमानै। वा रस मैं रसखानि पगी रति रैन जगी अँखियाँ अनुमानै। चंद पै बिंब औ बिंब कैरव कैरव पै मुकता प्रयानै।।226।। अंगनि अंग मिलाइ दोऊ रसखानि रहे लिपटे तरु घाहीं। संगनि संग अनंग को रंग सुरंग सनी पिय दै गल बाहीं। बैन ज्यौं मैन सु ऐन सनेह को लूटि रहे रति अंदर जाहीं। नीबी गहै कुच कंचन कुंभ कहै बनिता पिय नाही जु नाहीं।।227।। आज अचानक राधिका रूप-निधान सों भेंट भई बन माहीं। देखत दीठि परे रसखानि मिले भरि अंक दिये गलबाहीं। प्रेम-पगी बतियाँ दुहुँ घाँ की दुहुँ कों लगीं अति ही जित चाहीं। मोहिनी मंत्र बसीकर जंत्र हटा पिय की तिय की नहिं नाही।।228।। वह सोई हुती परजंक लली लला लोनो सु आह भुजा भरिकै। अकुलाइ कै चौंकि उठी सु डरी निकरी चहैं अंकनि तें फरिकै। झटका झटकी मैं फटौ पटुका दर की अंगिया मुकता झरिकै। मुख बोल कढ़े रिस से रसखानि हटौ जू लला निबिया धरिकै।।229।। अँखियाँ अँखियाँ सों सकाइ मिलाइ हिलाइ रिझाइ हियो हरिबो। बतिया चित चोरन चेटक सी रस चारु चरित्रन ऊचिरबो।। रसखानि के प्रान सुधा भरिबो अधरान पै त्यौं अधरा धरिबो। इतने सब मैन के मोहिनी जंत्र पै मंत्र वसीकर सो करिबौ।।230।।
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Krishna
radha
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shwetashweta
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