❤जय सियाराम❤

 
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जय राम रमारमणं समनं | भव ताप भयाकुल पाहि जनं || अवधेस सुरेस रमेस विभो | सरनागत मागत पाहि प्रभो ||१|| दस सीस बिनासन बीस भुजा | कृत दूरी महा माहि भूरी रुजा | रजनीचर बृंद पतंग रहे | सर पावक तेज प्रचंड दहे ||२|| महि मंडल मंडन चारूतरं | धृत सायक चाप निषंग बरं | मद मोह महा ममता रजनी | तम पुंज दिवाकर तेज अनी ||३|| मनजात किरात निपात किए | मृग लोग कुभोग सरेन हिए | हति नाथ अनाथनि पाहि हरे | विषया बन पाँवर भूली परे ||४|| बाहु रोग बियोगन्हि लोग हए |भवदंध्री निरादर के फल ए | भव सिंधु अगाध परे नर ते | पद पंकज प्रेम न जे करते ||५|| अति दीन मलीन दुखी नितहीँ | जिन्ह के पद पंकज प्रीती नहीं | अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें | प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ||६|| नहीं राग न लोभ न मान मदा | तिन्ह कें सम वैभव वा विपदा | एहि ते तव सेवक होत मुदा | मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ||७|| करि प्रेम निरंतर नेम लिएँ |पद पंकज सेवत सुद्ध हिएँ | सम मानी निरादर आदरही | सब संत सुखी बिचरंति महि ||८|| मुनि मानस पंकज भृंग भजे | रघुवीर महा रनधीर अजे | तव नाम जपामि नमामि हरी | भव रोग महागद मान अरी ||९|| गुन सील कृपा परमायतनं | प्रनमामि निरंतर श्रीरमणं | रघुनंदन निकंदय द्वन्दधनं | महि पाल बिलोकय दीन जनं ||१०|| दोहा: बार बार बर मांगऊ हारिशी देहु श्रीरंग | पदसरोज अनपायनी भागती सदा सतसंग || बरनी उमापति राम गुन हरषि गए कैलास | तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास||
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